कुतिया
ख़ालिद जावेद के नाम
मगर बिल्ली को रोना चाहिए था
मुझे होशियार कर के ही इस रात सोना चाहिए था
कि वो घर में है
वो
यानी मिरी मौत
उसे कुछ भी नहीं करना पड़ा
मुझे तो सिर्फ़ लम्हे भर की इस शर्मिंदगी ने मार डाला
वो मेरे हाल पर मुँह फाड़ कर जब हँस रही थी
कि जब वो सामने आई
मिरी आँखों में ख़्वाबों की चमक थी
हथेली पर दवा की गोलियाँ थीं जिन को बदला था सवेरे डॉक्टर ने
और मैं निहायत मुतमइन था कल को ले कर
ये मंज़र यूँ नहीं कुछ और होना चाहिए था
और बहुत मुमकिन है होता भी
अगर मुझ को ज़रा आगाह कर देती वो कुतिया
वो मिरी बिल्ली
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