किसी ताँगे में फिर सामान रक्खा जा रहा है
किसी की आँसुओं से तर-ब-तर दाढ़ी के
कुछ टूटे हुए बाल
आज भी मुमकिन है मिल जाएँ
बड़े संदूक़ में रक्खे
मेरे बद-रंग से इक सुइटर पर
उसी दिन का कोई हम-शक्ल दिन है
किसी ताँगे में फिर सामान रक्खा जा रहा है
वही दहलीज़ है
लेकिन मिरे दाढ़ी नहीं है
मिरा लड़का गले से लग के मेरे
थपक कर पीठ मेरी
बुज़ुर्गों की तरह मुझ को तसल्ली दे रहा है
और मैं इक बच्चे की सूरत रो रहा हूँ
हिचकियों से
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