कहीं दाम-ए-सब्ज़ा-ए-गुल मिला कहीं आरज़ू का चमन खिला
तिरे हुस्न को ये ख़बर भी है मैं कहाँ कहाँ से गुज़र गया
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ग़ज़ल वही है जो हो शाख़-ए-गुल-निशाँ की तरह
जो बुझ सके न कभी दिल में है वो आग भरी
क़ुदरत है तुर्फ़ा-कार तुझे कुछ ख़बर भी है
न यही कि ज़ौक़-ए-नज़र मिरा सफ़-ए-गुल-रुख़ाँ से गुज़र गया