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क़ुदरत है तुर्फ़ा-कार तुझे कुछ ख़बर भी है - शारिक़ ईरायानी कविता - Darsaal

क़ुदरत है तुर्फ़ा-कार तुझे कुछ ख़बर भी है

क़ुदरत है तुर्फ़ा-कार तुझे कुछ ख़बर भी है

वो आइना-शिकन भी है आईना-गर भी है

सहरा को छोड़ दें तो कहाँ जा के ये रहें

आवारगान-इश्क़-ओ-मोहब्बत का घर भी है

मस्जूद काएनात हो जैसे नज़र-नवाज़

कितना लतीफ़ वक़्त तुलू-ए-सहर भी है

का'बे का एहतिराम है इक फ़र्ज़-ए-ख़ुश-गवार

मैं क्या करूँ नज़र में तिरा संग-ए-दर भी है

साक़ी वो मय पिला कि हमेशा रहे सुरूर

महफ़िल में मुझ सा बादा-कश-ए-मो'तबर भी है

ना-आश्ना-ए-ग़ैरत-पर्वाज़ हैं असीर

क़ैद-ए-क़फ़स में तज़्किरा-ए-बाल-ओ-पर भी है

तक़दीर नाज़ करती है होती है जब नसीब

'शारिक़' शिकस्त-ए-दिल को नवेद-ए-ज़फ़र भी है

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In Hindi By Famous Poet Shariq Irayani. is written by Shariq Irayani. Complete Poem in Hindi by Shariq Irayani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.