क़ुदरत है तुर्फ़ा-कार तुझे कुछ ख़बर भी है
क़ुदरत है तुर्फ़ा-कार तुझे कुछ ख़बर भी है
वो आइना-शिकन भी है आईना-गर भी है
सहरा को छोड़ दें तो कहाँ जा के ये रहें
आवारगान-इश्क़-ओ-मोहब्बत का घर भी है
मस्जूद काएनात हो जैसे नज़र-नवाज़
कितना लतीफ़ वक़्त तुलू-ए-सहर भी है
का'बे का एहतिराम है इक फ़र्ज़-ए-ख़ुश-गवार
मैं क्या करूँ नज़र में तिरा संग-ए-दर भी है
साक़ी वो मय पिला कि हमेशा रहे सुरूर
महफ़िल में मुझ सा बादा-कश-ए-मो'तबर भी है
ना-आश्ना-ए-ग़ैरत-पर्वाज़ हैं असीर
क़ैद-ए-क़फ़स में तज़्किरा-ए-बाल-ओ-पर भी है
तक़दीर नाज़ करती है होती है जब नसीब
'शारिक़' शिकस्त-ए-दिल को नवेद-ए-ज़फ़र भी है
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