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फ़ज़ा-ए-सेहन-ए-गुलिस्ताँ है सोगवार अभी - शरीफ़ कुंजाही कविता - Darsaal

फ़ज़ा-ए-सेहन-ए-गुलिस्ताँ है सोगवार अभी

फ़ज़ा-ए-सेहन-ए-गुलिस्ताँ है सोगवार अभी

ख़िज़ाँ की क़ैद में है यूसुफ़-ए-बहार अभी

अभी चमन पे चमन का गुमाँ नहीं होता

क़बा-ए-ग़ुंचा को होना है तार तार अभी

अभी है ख़ंदा-ए-गुल भी अगर तो ज़ेर-लबी

रुका रुका सा है कुछ नग़्मा-ए-हज़ार अभी

चमन तो ख़ैर चमन है नवा-गरों को नहीं

ख़ुद अपनी शाख़-ए-नशेमन पे इख़्तियार अभी

अभी उमीद की सरसों कहीं न फूली

बसंत का है ज़माने को इंतिज़ार अभी

तही-सुबूई किसी की ये कह रही है 'शरीफ़'

निज़ाम-ए-मय-कदा बदलेगा एक बार अभी

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In Hindi By Famous Poet Sharif Kunjahi. is written by Sharif Kunjahi. Complete Poem in Hindi by Sharif Kunjahi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.