शरीफ़ कुंजाही कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शरीफ़ कुंजाही

शरीफ़ कुंजाही कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शरीफ़ कुंजाही
नामशरीफ़ कुंजाही
अंग्रेज़ी नामSharif Kunjahi

तू जून की गर्मी से न घबरा कि जहाँ में

तवील रात भी आख़िर को ख़त्म होती है

ख़ंदा-ए-मौज मिरी तिश्ना-लबी ने जाना

गुलज़ार में वो रुत भी कभी आ के रहेगी

ग़ुनूदा राहों को तक तक के सोगवार न हो

बस्तियाँ तू ने ख़लाओं में बसाईं भी तो क्या

पस्पाई

तू समझता है तो ख़ुद तेरी नज़र गहरी नहीं

तलाश जिन की है वो दिन ज़रूर आएँगे

कितने नाज़ुक कितने ख़ुश-गुल फूलों से ख़ुश-रंग प्याले

जो अपने सर पे सर-ए-शाख़-ए-आशियाँ गुज़री

गुलज़ार में वो रुत भी कभी आ के रहेगी

फ़ज़ा-ए-सेहन-ए-गुलिस्ताँ है सोगवार अभी

धड़कनें बंद-ए-तकल्लुफ़ से ज़रा आज़ाद कर

अब किसी शाख़ पे हिलता नहीं पत्ता कोई

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