किसी को मार के ख़ुश हो रहे हैं दहशत-गर्द
कहीं पे शाम-ए-ग़रीबाँ कहीं दिवाली है
Parveen Shakir
Wasi Shah
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Habib Jalib
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(546) Peoples Rate This
सरों पे ओढ़ के मज़दूर धूप की चादर
पर्दा-ए-रुख़ क्या उठा हर-सू उजाले हो गए
सुकून-ए-क़ल्ब मयस्सर किसे जहान में है
हमारे जिस्म के अंदर भी कोई रहता है
जो तेरी यादों से इस दिल का आफ़्ताब मिले
जो अपनी चश्म-ए-तर से दिल का पारा छोड़ जाता है
पहुँच गया था वो कुछ इतना रौशनी के क़रीब
हमारे सर हर इक इल्ज़ाम धर भी सकता है
गर दर-ए-हर्फ़-ए-सदाक़त ये नहीं था फिर क्यूँ
जो आँसुओं की ज़बाँ को मियाँ समझने लगे
पेड़ के नीचे ज़रा सी छाँव जो उस को मिली