वो डर के आगे निकल जाएगा अगर यूँही
तो जीत पाँव को चूमेगी उम्र भर यूँही
बरहना-पा मिरी साँसें रगों के नेज़ों पर
करेंगी कैसे भला रक़्स उम्र भर यूँही
सरों पे अपने तमाज़त का बोझ उठाए हुए
ये कौन महव-ए-सफ़र है डगर डगर यूँही
कि जैसे प्यास से लब जल रहे हों पानी के
शिकम की आग से जलती है दोपहर यूँही