Ghazals of Sharib Mauranwi
नाम | शारिब मौरान्वी |
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अंग्रेज़ी नाम | Sharib Mauranwi |
ज़ुल्म करते हुए वो शख़्स लरज़ता ही नहीं
वो डर के आगे निकल जाएगा अगर यूँही
सुकून-ए-क़ल्ब मयस्सर किसे जहान में है
पर्दा-ए-रुख़ क्या उठा हर-सू उजाले हो गए
पहुँच गया था वो कुछ इतना रौशनी के क़रीब
मिले हैं दर्द ही मुझ को मोहब्बतों के एवज़
जो तेरी यादों से इस दिल का आफ़्ताब मिले
जो अपनी चश्म-ए-तर से दिल का पारा छोड़ जाता है
जो आँसुओं की ज़बाँ को मियाँ समझने लगे
हवा के दोश पे बादल की मुश्क ख़ाली है
हमारे सर हर इक इल्ज़ाम धर भी सकता है
हमारे जिस्म के अंदर भी कोई रहता है
गर दर-ए-हर्फ़-ए-सदाक़त ये नहीं था फिर क्यूँ
अपनी आँखों पर वो नींदों की रिदा ओढ़े हुए