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कुछ भी हो उस से जुदाई का सबब घर जाओ - शरीफ़ अहमद शरीफ़ कविता - Darsaal

कुछ भी हो उस से जुदाई का सबब घर जाओ

कुछ भी हो उस से जुदाई का सबब घर जाओ

ढल चुकी शाम अंधेरा हुआ अब घर जाओ

शब में घुस आते हैं आसेब मिरे शहरों में

ताक में रहती है ये वहशत-ए-शब घर जाओ

लोग हक़ माँगने पहुँचे थे शहंशाह के पास

नोक-ए-ख़ंजर पे मिला हुक्म के सब घर जाओ

नहीं ये ज़ख़्म क़बीले के लिए बाइ'स-ए-नाज़

क़त्ल हो लो किसी तलवार से तब घर जाओ

उन से वाबस्ता हैं बचपन की हज़ारों यादें

चूम लेना दर-ओ-दीवार को जब घर जाओ

गाँव में कोई तुम्हारे लिए बेकल है 'शरीफ़'

जाने कब तुम को ख़याल आएगा कब घर जाओ

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In Hindi By Famous Poet Shareef Ahmad Shareef. is written by Shareef Ahmad Shareef. Complete Poem in Hindi by Shareef Ahmad Shareef. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.