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एक शय थी कि जो पैकर में नहीं है अपने - शरीफ़ अहमद शरीफ़ कविता - Darsaal

एक शय थी कि जो पैकर में नहीं है अपने

एक शय थी कि जो पैकर में नहीं है अपने

जिस को देते हो सदा घर में नहीं है अपने

तुझे पाने की तमन्ना तुझे छूने का ख़याल

ऐसा सौदा भी कोई सर में नहीं है अपने

तू ने तलवार भी देखी निगह-ए-यार भी देख

ये तब-ओ-ताब तो ख़ंजर में नहीं है अपने

किस क़बीले से उड़ा लाई है फ़ौज-ए-आदा

ऐसा जर्रार तो लश्कर में नहीं है अपने

सर-निगूँ जिस की फ़क़ीरी के मुक़ाबिल शाही

अब वो शय मर्द-ए-क़लंदर में नहीं है अपने

लाख कीजे तलब-ए-राहत-ओ-आराम 'शरीफ़'

क्या मिलेगा जो मुक़द्दर में नहीं है अपने

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In Hindi By Famous Poet Shareef Ahmad Shareef. is written by Shareef Ahmad Shareef. Complete Poem in Hindi by Shareef Ahmad Shareef. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.