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तिश्ना-लब कोई जो सर-गश्ता सराबों में रहा - शरर फ़तेह पुरी कविता - Darsaal

तिश्ना-लब कोई जो सर-गश्ता सराबों में रहा

तिश्ना-लब कोई जो सर-गश्ता सराबों में रहा

बस्ता-ए-वहम-ओ-गुमाँ भागता ख़्वाबों में रहा

दिल की आवारा-मिज़ाजी का गिला क्या कीजे

ख़ाना-बर्बाद रहा ख़ाना-ख़राबों में रहा

एक वो हर्फ़-ए-जुनूँ नक़्श-गर-ए-लौह-ओ-क़लम

एक वो बाब-ए-ख़िरद बंद किताबों में रहा

बे-हिसी वो है कि इस दौर में जीने का मज़ा

न गुनाहों में रहा और न सवाबों में रहा

जम्अ' करता रहा ये सूद-ओ-ज़ियाँ के आदाद

उम्र भर ज़ेहन-ए-बशर उलझा हिसाबों में रहा

अब कोई और ही शय वज्ह-ए-नशात-ए-दिल हो

नश्शा-ओ-कैफ़-ए-शरर अब न शराबों में रहा

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In Hindi By Famous Poet Sharar Fatehpuri. is written by Sharar Fatehpuri. Complete Poem in Hindi by Sharar Fatehpuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.