पामालियों का ज़ीना है अर्श से भी ऊँचा
दिल उस की राह में है क्या सरफ़राज़ मेरा
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जिस को चाहा तू ने उस को मिल गया
शैख़ कुछ अपने-आप को समझें
अल्लाह अल्लाह ख़ुसूसिय्यत-ए-ज़ात-ए-हसनैन
एक को एक नहीं रश्क से मरने देता
दुख़्त-ए-रज़ और तू कहाँ मिलती
दिल में मिरे जिगर में मिरे आँख में मिरी
हज़रत-ए-नासेह भी मय पीने लगे
अब तो मय-ख़ानों से भी कुछ बढ़ कर
ज़र्फ़ तो देखिए मेरे दिल-ए-शैदाई का
दुख़्त-ए-रज़ ज़ाहिद से बोली मुझ से घबराते हो क्यूँ
आलम-ए-इश्क़ में अल्लाह-रे नज़र की वुसअत