इंतिहा-ए-मअरिफ़त से ऐ 'शरफ़'
मैं ने जो देखा जो समझा कुछ न था
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(488) Peoples Rate This
अल्लाह अल्लाह ख़ुसूसिय्यत-ए-ज़ात-ए-हसनैन
एक को एक नहीं रश्क से मरने देता
दुख़्त-ए-रज़ और तू कहाँ मिलती
अब तो मय-ख़ानों से भी कुछ बढ़ कर
हज़रत-ए-नासेह भी मय पीने लगे
पामालियों का ज़ीना है अर्श से भी ऊँचा
जिस को चाहा तू ने उस को मिल गया
कम-सिनी जिन की हमें याद है और कल की ही बात
पारसा बन के सू-ए-मय-ख़ाना
शैख़ कुछ अपने-आप को समझें
जी में आता है कि फूलों की उड़ा दूँ ख़ुशबू