हज़रत-ए-नासेह भी मय पीने लगे
अब मुझे समझाने वाला कौन था
Wasi Shah
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
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Jaun Eliya
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
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पामालियों का ज़ीना है अर्श से भी ऊँचा
इस पर्दे में ये हुस्न का आलम है इलाही
आलम-ए-इश्क़ में अल्लाह-रे नज़र की वुसअत
शैख़ कुछ अपने-आप को समझें
दुख़्त-ए-रज़ और तू कहाँ मिलती
हैरत में हूँ इलाही क्यूँ-कर ये ख़त्म होगा
जिस को चाहा तू ने उस को मिल गया
उस ने माँगा जो दिल दिए ही बनी
अल्लाह अल्लाह ख़ुसूसिय्यत-ए-ज़ात-ए-हसनैन
इंतिहा-ए-मअरिफ़त से ऐ 'शरफ़'
पारसा बन के सू-ए-मय-ख़ाना