एक को एक नहीं रश्क से मरने देता
ये नया कूचा-ए-क़ातिल में तमाशा देखा
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आलम-ए-इश्क़ में अल्लाह-रे नज़र की वुसअत
उस ने माँगा जो दिल दिए ही बनी
अब तो मय-ख़ानों से भी कुछ बढ़ कर
हज़रत-ए-नासेह भी मय पीने लगे
क़दमों पे गिरा तो हट के बोले
जी में आता है कि फूलों की उड़ा दूँ ख़ुशबू
कम-सिनी जिन की हमें याद है और कल की ही बात
ज़र्फ़ तो देखिए मेरे दिल-ए-शैदाई का
तमाम चारागरों से तो मिल चुका है जवाब
अल्लाह अल्लाह ख़ुसूसिय्यत-ए-ज़ात-ए-हसनैन
शैख़ कुछ अपने-आप को समझें