दुख़्त-ए-रज़ और तू कहाँ मिलती
खींच लाए शराब-ख़ाने से
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हैरत में हूँ इलाही क्यूँ-कर ये ख़त्म होगा
उस ने माँगा जो दिल दिए ही बनी
तमाम चारागरों से तो मिल चुका है जवाब
इंतिहा-ए-मअरिफ़त से ऐ 'शरफ़'
अल्लाह अल्लाह ख़ुसूसिय्यत-ए-ज़ात-ए-हसनैन
दुख़्त-ए-रज़ ज़ाहिद से बोली मुझ से घबराते हो क्यूँ
एक को एक नहीं रश्क से मरने देता
क़दमों पे गिरा तो हट के बोले
आलम-ए-इश्क़ में अल्लाह-रे नज़र की वुसअत
जिस को चाहा तू ने उस को मिल गया
शैख़ कुछ अपने-आप को समझें