दिल में मिरे जिगर में मिरे आँख में मिरी
हर जा है दोस्त और नहीं मिलती है जा-ए-दोस्त
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हज़रत-ए-नासेह भी मय पीने लगे
एक को एक नहीं रश्क से मरने देता
अब तो मय-ख़ानों से भी कुछ बढ़ कर
इंतिहा-ए-मअरिफ़त से ऐ 'शरफ़'
क़दमों पे गिरा तो हट के बोले
दुख़्त-ए-रज़ ज़ाहिद से बोली मुझ से घबराते हो क्यूँ
अल्लाह अल्लाह ख़ुसूसिय्यत-ए-ज़ात-ए-हसनैन
उस ने माँगा जो दिल दिए ही बनी
पारसा बन के सू-ए-मय-ख़ाना
जिस को चाहा तू ने उस को मिल गया
तसव्वुर ने तिरे आबाद जब से घर किया मेरा
जी में आता है कि फूलों की उड़ा दूँ ख़ुशबू