अल्लाह अल्लाह ख़ुसूसिय्यत-ए-ज़ात-ए-हसनैन
सारी उम्मत के हैं पोतों से नवासे बढ़ कर
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तमाम चारागरों से तो मिल चुका है जवाब
हैरत में हूँ इलाही क्यूँ-कर ये ख़त्म होगा
ज़र्फ़ तो देखिए मेरे दिल-ए-शैदाई का
क़दमों पे गिरा तो हट के बोले
जिस को चाहा तू ने उस को मिल गया
अब तो मय-ख़ानों से भी कुछ बढ़ कर
हज़रत-ए-नासेह भी मय पीने लगे
जी में आता है कि फूलों की उड़ा दूँ ख़ुशबू
उश्शाक़ के आगे न लड़ा ग़ैरों से आँखें
पामालियों का ज़ीना है अर्श से भी ऊँचा
इंतिहा-ए-मअरिफ़त से ऐ 'शरफ़'