ज़र्फ़ तो देखिए मेरे दिल-ए-शैदाई का
ज़र्फ़ तो देखिए मेरे दिल-ए-शैदाई का
जाम-ए-मय बन गया इक मस्त-ए-ख़ुद-आराई का
जी में आता है कि फूलों की उड़ा दूँ ख़ुशबू
रंग उड़ा लाए हैं ज़ालिम तिरी रानाई का
मैं अभी उन को शनासा-ए-मोहब्बत कर दूँ
काश मौक़ा तो मिले उन से शनासाई का
भूल जाओगे यहाँ आ के तुम अपना आलम
तुम ने देखा नहीं गोशा मिरी तन्हाई का
तुम ने काबा तो बनाया है 'शरफ़' के दिल को
हुक्म इस काबे में दो सब को जबीं-साई का
(695) Peoples Rate This