कम-सिनी जिन की हमें याद है और कल की ही बात
तमाम चारागरों से तो मिल चुका है जवाब
उश्शाक़ के आगे न लड़ा ग़ैरों से आँखें
तेरी आँखें जिसे चाहें उसे अपना कर लें
क़दमों पे गिरा तो हट के बोले
दिल में मिरे जिगर में मिरे आँख में मिरी
उस ने माँगा जो दिल दिए ही बनी
जी में आता है कि फूलों की उड़ा दूँ ख़ुशबू
ज़र्फ़ तो देखिए मेरे दिल-ए-शैदाई का
दुख़्त-ए-रज़ और तू कहाँ मिलती
शैख़ कुछ अपने-आप को समझें
आलम-ए-इश्क़ में अल्लाह-रे नज़र की वुसअत