शोर थमने के बाद
अब शोर थमा तो मैं ने जाना
आधी के क़रीब रो चुकी है
शब गर्द को अश्क धो चुकी है
चादर काली ख़ला की मुझ पर
भारी है मिस्ल-ए-मौत शहपर
है साँस को रुकने का बहाना
तस्बीह से टूटता है दाना
मैं नुक़्ता-ए-हक़ीर आसमानी
बे-फ़स्ल है बे-ज़माँ है तू भी
कहती है ये फ़लसफ़ा-तराज़ी
लेकिन ये सनसनाती वुसअत
इतनी बे-हर्फ़ ओ बे-मुरव्वत
आमादा-ए-हर्ब-ए-ला-ज़मानी
दुश्मन की अजनबी निशानी
(592) Peoples Rate This