उन का ख़याल हर तरफ़ उन का जमाल हर तरफ़
उन का ख़याल हर तरफ़ उन का जमाल हर तरफ़
हैरत-ए-जल्वा रू-ब-रू दस्त-ए-सवाल हर तरफ़
मुझ से शिकस्ता-पा से है शहर की तेरे आबरू
छोड़ गए मिरे क़दम नक़्श-ए-कमाल हर तरफ़
हम हैं जवाँ भी पीर भी हम हैं अदम भी ज़ीस्त भी
हम हैं असीर-ए-हल्का-ए-क़ौल-ए-मुहाल हर तरफ़
नग़्मा गिरा है बूँद बूँद फिर भी उठी है कितनी गूँज
उड़ती फिरे है ज़ेहन में गर्द-ए-ख़याल हर तरफ़
क़लब-ए-हयात-ओ-मौत से मिल न सका कोई जवाब
फेंका किए हैं गरचे हम संग-ए-सवाल हर तरफ़
(652) Peoples Rate This