Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_23a7e444e6c560399c0543439362980f, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
जो उतरा फिर न उभरा कह रहा है - शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी कविता - Darsaal

जो उतरा फिर न उभरा कह रहा है

जो उतरा फिर न उभरा कह रहा है

ये पानी मुद्दतों से बह रहा है

मिरे अंदर हवस के पत्थरों को

कोई दीवाना कब से सह रहा है

तकल्लुफ़ के कई पर्दे थे फिर भी

मिरा तेरा सुख़न बे-तह रहा है

किसी के ए'तिमाद-ए-जान-ओ-दिल का

महल दर्जा-ब-दर्जा ढह रहा है

घरौंदे पर बदन के फूलना क्या

किराए पर तू इस में रह रहा है

कभी चुप तो कभी महव-ए-फ़ुग़ाँ दिल

ग़रज़ इक गोमगो में ये रहा है

(595) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Shamsur Rahman Faruqi. is written by Shamsur Rahman Faruqi. Complete Poem in Hindi by Shamsur Rahman Faruqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.