सदियों के तआ'क़ुब में लम्हे नहीं जाएँगे
जाएँगे जहाँ तक हम रस्ते नहीं जाएँगे
गो दश्त-नवर्दी को हम सैर समझते हैं
लौटेंगे तो चेहरे भी देखे नहीं जाएँगे
सब रेत की दीवारें गिर जाएँगी लम्हों में
लेकिन मिरे दरिया तो रोके नहीं जाएँगे
Parveen Shakir
Wasi Shah
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Javed Akhtar
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सजे हुए बाम-ओ-दर से आगे की सोचता हूँ
इक नींद की वादी से गुज़ारा गया मुझ को
ख़ुश-कुन ख़बर के धोके में रक्खा गया मुझे
वक़्त हर बार बदलता हुआ रह जाता है
दिनों से कैसे शबों में ढलते हैं दिन हमारे
कोई वज्द है न धमाल है तिरे इश्क़ में
जुनूब ओ मश्रिक ओ मग़रिब तिरे शुमाल तिरा
वो अक्स मुझ में जुनूँ-साज़ रक़्स करने लगा
जहान-ए-ख़्वाब-ए-मेहरबाँ की ख़ैर हो