कोई वज्द है न धमाल है तिरे इश्क़ में
मिरा दिल कि वक़्फ़-ए-मलाल है तिरे इश्क़ में
ये जो ख़्वाब में भी है ख़्वाब कैफ़-ओ-सुरूर का
तिरे इश्क़ का ही कमाल है तिरे इश्क़ में
मैं निकल ही जाऊँगा वहशतों के हिसार से
ये तो सोचना भी मुहाल है तिरे इश्क़ में
Gulzar
Anwar Masood
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(571) Peoples Rate This
इक नींद की वादी से गुज़ारा गया मुझ को
सदियों के तआ'क़ुब में लम्हे नहीं जाएँगे
सजे हुए बाम-ओ-दर से आगे की सोचता हूँ
जुनूब ओ मश्रिक ओ मग़रिब तिरे शुमाल तिरा
ख़ुश-कुन ख़बर के धोके में रक्खा गया मुझे
वक़्त हर बार बदलता हुआ रह जाता है
दिनों से कैसे शबों में ढलते हैं दिन हमारे
वो अक्स मुझ में जुनूँ-साज़ रक़्स करने लगा
जहान-ए-ख़्वाब-ए-मेहरबाँ की ख़ैर हो