जुनूब ओ मश्रिक ओ मग़रिब तिरे शुमाल तिरा
मैं क्या करूँ मिरे चारों तरफ़ है जाल तिरा
जहान-ए-संग-सिफ़त से ये कैसी उम्मीदें
करेगा कौन यहाँ आइने मलाल तिरा
ये लोग जाने किधर से जवाब ले आए
छुपाया ख़ुद से भी मैं ने हर इक सवाल तिरा
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वक़्त हर बार बदलता हुआ रह जाता है
कोई वज्द है न धमाल है तिरे इश्क़ में
ख़ुश-कुन ख़बर के धोके में रक्खा गया मुझे
सजे हुए बाम-ओ-दर से आगे की सोचता हूँ
इक नींद की वादी से गुज़ारा गया मुझ को
वो अक्स मुझ में जुनूँ-साज़ रक़्स करने लगा
दिनों से कैसे शबों में ढलते हैं दिन हमारे
सदियों के तआ'क़ुब में लम्हे नहीं जाएँगे
जहान-ए-ख़्वाब-ए-मेहरबाँ की ख़ैर हो