इक नींद की वादी से गुज़ारा गया मुझ को
फिर ख़्वाब की दहलीज़ पे मारा गया मुझ को
दिल हूँ सो किसी चश्म के एहसान हैं सारे
हाथों से बनाया न सँवारा गया मुझ को
रख दी गई पहले मिरे सीने में वो ख़ुशबू
फिर इश्क़ के रंगों से निखारा गया मुझ को
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जहान-ए-ख़्वाब-ए-मेहरबाँ की ख़ैर हो
वो अक्स मुझ में जुनूँ-साज़ रक़्स करने लगा
वक़्त हर बार बदलता हुआ रह जाता है
ख़ुश-कुन ख़बर के धोके में रक्खा गया मुझे
जुनूब ओ मश्रिक ओ मग़रिब तिरे शुमाल तिरा
दिनों से कैसे शबों में ढलते हैं दिन हमारे
सजे हुए बाम-ओ-दर से आगे की सोचता हूँ
सदियों के तआ'क़ुब में लम्हे नहीं जाएँगे
कोई वज्द है न धमाल है तिरे इश्क़ में