हम तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ का गिला भी नहीं करते

हम तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ का गिला भी नहीं करते

तुम इतने ख़फ़ा हो कि जफ़ा भी नहीं करते

तुम शौक़ से एलान-ए-जफ़ा पर रहो नाज़ाँ

हम जुरअत-ए-इज़हार-ए-वफ़ा भी नहीं करते

माना कि हँसी भी है अदा आप की लेकिन

इतना किसी बेकस पे हँसा भी नहीं करते

हम जुरअत-ए-गुफ़्तार के क़ाइल तो हैं लेकिन

हर बात सर-ए-बज़्म कहा भी नहीं करते

हर हाल में मक़्सद है सफ़र महव-ए-सफ़र हैं

नाकामी-ए-पैहम का गिला भी नहीं करते

मुद्दत से है ख़ामोश फ़ज़ा दार-ओ-रसन की

अब जुर्म-ए-वफ़ा अहल-ए-वफ़ा भी नहीं करते

क्या जानिए किस रंग में है शम्स 'ज़ुबैरी'

बुत एक तरफ़ ज़िक्र-ए-ख़ुदा भी नहीं करते

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In Hindi By Famous Poet Shams Zubairi. is written by Shams Zubairi. Complete Poem in Hindi by Shams Zubairi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.