बहुत कम बोलना अब कर दिया है
कई मौक़ों पे ग़ुस्सा भी पिया है
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जो चाहते हो कि मंज़िल तुम्हारी जादा हो
किसी की चाह में दिल को जलाना ठीक है क्या
अजनबी बन के तो गुज़रा मत कर
यूँ ब-ज़ाहिर देखे तो यार सब
अपना घर भी कोई आसेब का घर लगता है
मैं सोचता हूँ कभी ऐसा हो न जाए कहीं