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यूँ ब-ज़ाहिर देखे तो यार सब - शम्स तबरेज़ी कविता - Darsaal

यूँ ब-ज़ाहिर देखे तो यार सब

यूँ ब-ज़ाहिर देखे तो यार सब

वक़्त पड़ने पर यही बेकार सब

मस्लहत है हक़ नज़र-अंदाज़ कर

हक़ कहा जिस ने चढ़े वो दार सब

हम अना की पोटली थामे रहे

हाथ ख़ाली थे हुए वो पार सब

ऐ ख़ुदा तू ने बनाई थीं वो क्या

जिस की आँखों से हुए सरशार सब

कुछ सुकूँ शायद मयस्सर आएगा

छोड़ के देखा था ये घर-बार सब

कोई ऐसा वक़्त तो फिर आए 'शम्स'

नींद से जग जाएँ फिर इक बार सब

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In Hindi By Famous Poet Shams Tabrezi. is written by Shams Tabrezi. Complete Poem in Hindi by Shams Tabrezi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.