क़बीला-वार अदावत का सिलसिला 'तारिक़'
फ़साद-ए-शहर की सूरत में अब भी चलता है
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महबूब सा अंदाज़-ए-बयाँ बे-अदबी है
नींद आँखों में समो लूँ तो सियह रात कटे
किसी से पूछें कौन बताए किस ने महशर देखा है
लोग क्यूँ ढूँड रहे हैं मुझे पत्थर ले कर
तमाम शहर ब-यक-वक़्त जल गया कैसे
हिचकियाँ लेता हुआ दुनिया से दीवाना चला
पहुँचा मैं कू-ए-यार में जब सर लिए हुए
तू याद आया और मिरी आँख भर गई