मैं ने हाथों में कुछ नहीं रक्खा
ऐसी बातों में कुछ नहीं रक्खा
इक सिवा तेरे दर्द के मैं ने
अपनी आँखों में कुछ नहीं रक्खा
मेरी रातों का पूछते क्या हो
मेरी रातों में कुछ नहीं रक्खा
इक तसल्ली सी है 'रविश' वर्ना
रिश्ते-नातों में कुछ नहीं रक्खा
Mohsin Naqvi
Gulzar
Javed Akhtar
Rahat Indori
Anwar Masood
Wasi Shah
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(659) Peoples Rate This
आँखों में हिज्र चेहरे पे ग़म की शिकन तो है
इक शख़्स तेरी बज़्म से ख़ामोश उठ गया
सितारा टूट के बिखरा और इक जहान खुला
दीवार की सूरत था कभी दर की तरह था
मुझे हर शाम इक सुनसान जंगल खींच लेता है
इस से पहले कि चराग़ों को वो बुझता देखे
ज़मीं को खींच के मैं सू-ए-आसमाँ ले जाऊँ
मिरे अतराफ़ ये कैसी सदाएँ रक़्स करती हैं
पलकों पे सितारा सा मचलने के लिए था
दूर तक फैली हुई है तीरगी बातें करो
रूह को अपनी तह-ए-दाम नहीं कर सकता