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वहाँ खुले भी तो क्यूँकर बिसात-ए-हिकमत-ओ-फ़न - शमीम करहानी कविता - Darsaal

वहाँ खुले भी तो क्यूँकर बिसात-ए-हिकमत-ओ-फ़न

वहाँ खुले भी तो क्यूँकर बिसात-ए-हिकमत-ओ-फ़न

मिले हर एक जबीं पर जहाँ शिकन ही शिकन

हमारी ख़ाक कभी राएगाँ न जाएगी

हमारी ख़ाक को पहचानती है ख़ाक-ए-वतन

ख़िज़ाँ की रात में कुम्हला के फूल गिरते हैं

तो जाग जाती है सोई हुई ज़मीन-ए-चमन

बहुत है रात अँधेरी मगर चले ही चलो

कि आप अपने मुसाफ़िर को ढूँड लेगी किरन

खिले हैं फूल मगर दिल कहाँ खिले हैं 'शमीम'

अभी चमन से बहुत दूर है बहार-ए-चमन

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In Hindi By Famous Poet Shamim Karhani. is written by Shamim Karhani. Complete Poem in Hindi by Shamim Karhani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.