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शराब ओ शेर के साँचे में ढल के आई है - शमीम करहानी कविता - Darsaal

शराब ओ शेर के साँचे में ढल के आई है

शराब ओ शेर के साँचे में ढल के आई है

ये शाम किस की गली से निकल के आई है

समझ रहा हूँ सहर के फ़रेब-ए-रंगीं को

नया लिबास शब-ए-ग़म बदल के आई है

तिरे क़दम की बहक है तिरी क़बा की महक

नसीम तेरे शबिस्ताँ से चल के आई है

वफ़ा पे आँच न आती अगर तुम्ही कहते

ज़बाँ तक आज जो इक बात चल के आई है

सजी हुई है सितारों से मय-कदे की फ़ज़ा

कि रात तेरे तसव्वुर में ढल के आई है

ब-एहतियात हमारी तरफ़ उठी है निगाह

लबों पे मौज-ए-तबस्सुम सँभल के आई है

हमारी आह हमारे ही दिल की आह नहीं

न जाने कितने दिलों से निकल के आई है

सहर तक आ तो गई शम्अ ता-ब परवाना

मगर हरारत-ए-ग़म से पिघल के आई है

मिरी निगाह-ए-तमन्ना का अक्स हो न 'शमीम'

किसी के रुख़ पे जो सुर्ख़ी मचल के आई है

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In Hindi By Famous Poet Shamim Karhani. is written by Shamim Karhani. Complete Poem in Hindi by Shamim Karhani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.