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निकल पड़े हैं सनम रात के शिवाले से - शमीम करहानी कविता - Darsaal

निकल पड़े हैं सनम रात के शिवाले से

निकल पड़े हैं सनम रात के शिवाले से

कुछ आज शहर-ए-ग़रीबाँ में हैं उजाले से

चलो पलट भी चलें अपने मय-कदे की तरफ़

ये आ गए किस अंधेरे में हम उजाले से

ख़ुदा करे कि बिखर जाएँ मेरे शानों पर

सँवर रहे हैं ये बादल जो काले काले से

बुतों की ख़ल्वत-ए-रंगीं में बज़्म-ए-अंजुम में

कहाँ कहाँ न गए हम तिरे हवाले से

जुनूँ की वादी-ए-आज़ाद में तलब कर लो

निकाल लो हमें शाम-ओ-सहर के हाले से

हयात-ए-अस्र मुझे फेर दे मिरा माज़ी

हसीन था वो अंधेरा तिरे उजाले से

कोई मनाए तो कैसे मनाए दिल को 'शमीम'

ये बात पूछिए इक रूठ जाने वाले से

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In Hindi By Famous Poet Shamim Karhani. is written by Shamim Karhani. Complete Poem in Hindi by Shamim Karhani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.