ख़ुद कोई चाक-गरेबाँ है रग-ए-जाँ के क़रीब
ख़ुद कोई चाक-गरेबाँ है रग-ए-जाँ के क़रीब
ऐ जुनूँ हश्र का सामाँ है रग-ए-जाँ के क़रीब
मंज़िल-ए-दिल से तो गुज़रे हुए दिन बीत गए
कारवान-ए-ग़म-ए-जानाँ है रग-ए-जाँ के क़रीब
दर-ब-दर किस लिए आवारा हो सर-गश्ता हो
दोस्तो कूचा-ए-जानाँ है रग-ए-जाँ के क़रीब
क्या कहें अब दिल-ए-बेताब का आलम यारो
मुज़्तरिब जैसे रग-ए-जाँ है रग-ए-जाँ के क़रीब
क्यूँ न काँटों की तरफ़ जाएँ तिरे दीवाने
ख़लिश-ए-जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ है रग-ए-जाँ के क़रीब
शबनम-ए-अश्क गिरा देता है ज़ख़्म-ए-जाँ पर
कोई हमदर्द सा इंसाँ है रग-ए-जाँ के क़रीब
किस के गाए हुए नग़्मात सुनाता हूँ 'शमीम'
कौन है वो जो ग़ज़ल-ख़्वाँ है रग-ए-जाँ के क़रीब
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