कौन है दर्द-आश्ना संग-दिली का दौर है
कौन है दर्द-आश्ना संग-दिली का दौर है
दिल का दिया बचाइए आज हवा कुछ और है
सारे जहाँ की शाम-ए-ग़म सुब्ह-ए-बहार बन गई
मेरी सहर का मसअला आज भी ज़ेर-ए-ग़ौर है
नश्शा-ए-दर्द खो गया साक़ी-ए-दर्द सो गया
महफ़िल-ए-दिल में जाएँ क्या तिश्ना-लबी का दौर है
ख़ून-ए-जिगर से उम्र भर क़र्ज़-ए-हयात अदा किया
फिर भी यही सुना किए रोज़-ए-हिसाब और है
दैर ओ हरम के दरमियाँ ढूँडिए क्यूँ 'शमीम' को
अब्र ओ शफ़क़ को देखिए मेरा ख़याल और है
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