Ghazals of Shamim Karhani
नाम | शमीम करहानी |
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अंग्रेज़ी नाम | Shamim Karhani |
जन्म की तारीख | 1913 |
मौत की तिथि | 1975 |
जन्म स्थान | Delhi |
ज़ुल्मत-गह-ए-दौराँ में सुब्ह-ए-चमन-ए-दिल हूँ
ज़हर को मय दिल-ए-सद-पारा को मीना न कहो
ज़बाँ को हुक्म ही कहाँ कि दास्तान-ए-ग़म कहें
ये ख़ुशी ग़म-ए-ज़माना का शिकार हो न जाए
याद की सुब्ह ढल गई शौक़ की शाम हो गई
वो जुनूँ के अहद की चाँदनी ये गहन गहन की उदासियाँ
वो दिल भी जलाते हैं रख देते हैं मरहम भी
वहाँ खुले भी तो क्यूँकर बिसात-ए-हिकमत-ओ-फ़न
उन का वादा बदल गया है
शराब ओ शेर के साँचे में ढल के आई है
शम्अ' पर शम्अ' जलाती हुई साथ आती है
समझे है मफ़्हूम नज़र का दिल का इशारा जाने है
सहर को दे के नई निकहत-ए-हयात गई
रखना है तो फूलों को तू रख ले निगाहों में
क़ैद-ए-ग़म-ए-हयात से हम को छुड़ा लिया
पी ले जो लहू दिल का वो इश्क़ की मस्ती है
पी कर भी तबीअत में तल्ख़ी है गिरानी है
निकल पड़े हैं सनम रात के शिवाले से
निगार-ए-मह-वश ओ महबूब-ए-लाला-रू की तरह
मुझे दैर से तअल्लुक़ न हरम से आश्नाई
माना कि सई-ए-इश्क़ का अंजाम-कार क्या
ख़ुद कोई चाक-गरेबाँ है रग-ए-जाँ के क़रीब
ख़मोश किस लिए बैठे हो चश्म-ए-तर क्यूँ हो
कौन है दर्द-आश्ना संग-दिली का दौर है
जुनूँ तो है मगर आओ जुनूँ में खो जाएँ
जो मिल गई हैं निगाहें कभी निगाहों से
जो देखते हुए नक़्श-ए-क़दम गए होंगे
जश्न-ए-हयात हो चुका जश्न-ए-ममात और है
हुजूम-ए-दर्द में ख़ंदाँ है कौन मेरे सिवा
हँसो न तुम रुख़-ए-दुश्मन जो ज़र्द है यारो