मिरी ख़ुशी से मिरे दोस्तों को ग़म है 'शमीम'
मुझे भी इस का बहुत ग़म है क्या किया जाए
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इस इल्तिफ़ात पर कोई दामन न थाम ले
न पूछ कब से ये दम घुट रहा है सीने में
हमारे साथ जिसे मौत से हो प्यार चले
गले लगा के जो सुनते थे दिल की आहों को
जब शिकायत थी कि तूफ़ाँ में सहारा न मिला
ज़मीं पे रह के दिमाग़ आसमाँ से मिलता है
बे-गुनाही का हर एहसास मिटा दे कोई
रहम ऐ ग़म-ए-जानाँ बात आ गई याँ तक
फ़ुर्क़त की भयानक रातों को इस तरह गुज़ारा करता हूँ
रौशनी लेने चले थे और अंधेरे छा गए
ये दौर-ए-अहल-ए-हवस है करम से काम न ले
साहिल पे लाई और सफ़ीने डुबो दिए