बहुत तवील शब-ए-ग़म है क्या किया जाए
उमीद-ए-सुब्ह बहुत कम है क्या किया जाए
Rahat Indori
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Anwar Masood
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1192) Peoples Rate This
रौशनी लेने चले थे और अंधेरे छा गए
रहम ऐ ग़म-ए-जानाँ बात आ गई याँ तक
इस इल्तिफ़ात पर कोई दामन न थाम ले
इलाही काश ग़म-ए-इश्क़ काम कर जाए
दुनिया-ए-मोहब्बत में हम से हर अपना पराया छूट गया
गले लगा के जो सुनते थे दिल की आहों को
सफ़ीना वो कभी शायान-ए-साहिल हो नहीं सकता
बा-वफ़ाई की अदा पाने लगा हूँ तुझ में
ज़रा भी जिस की वफ़ा का यक़ीन आया है
न पूछ कब से ये दम घुट रहा है सीने में
मिरी ख़ुशी से मिरे दोस्तों को ग़म है 'शमीम'