तिरा जल्वा निहायत दिल-नशीं है
तिरा जल्वा निहायत दिल-नशीं है
मोहब्बत लेकिन इस से भी हसीं है
जुनूँ की कोई मंज़िल ही नहीं है
यहाँ हर गाम गाम-ए-अव्वलीं है
सुना है यूँ भी अक्सर ज़िक्र उन का
कि जैसे कुछ तअल्लुक़ ही नहीं है
मसीहा बन के जो निकले थे घर से
लहू में तर उन्हीं की आस्तीं है
मैं राह-ए-इश्क़ का तन्हा मुसाफ़िर
किसे आवाज़ दूँ कोई नहीं है
'शमीम' उस को कहीं देखा है तुम ने
सुना है वो रग-ए-जाँ से क़रीं है
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