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रौशनी लेने चले थे और अंधेरे छा गए - शमीम जयपुरी कविता - Darsaal

रौशनी लेने चले थे और अंधेरे छा गए

रौशनी लेने चले थे और अंधेरे छा गए

मुस्कुराने भी न पाए थे कि आँसू आ गए

आज कितने दोस्त मुझ को देख कर कतरा गए

अल्लाह अल्लाह अब मोहब्बत में ये दिन भी आ गए

जब भी आया है किसी को भूल जाने का ख़याल

यक-ब-यक आवाज़ आई लीजिए हम आ गए

आह वो मंज़िल जो मेरी ग़फ़लतों से गुम हुई

हाए वो रहबर जो मुझ को राह से भटका गए

फिर ये रह रह कर किसी की याद तड़पाती है क्यूँ

अब तो हम तर्क-ए-मोहब्बत की क़सम भी खा गए

देख कर उन की निगाह-ए-लुत्फ़ इक मुद्दत के बाद

क्या बताएँ क्या ख़याल आया कि आँसू आ गए

उन के ही क़दमों की आहट रात भर आती रही

दिल की हर धड़कन पे हम समझे कि वो ख़ुद आ गए

अब कोई दैर ओ हरम से भी सदा आती नहीं

हम तिरी धुन में ख़ुदा जाने कहाँ तक आ गए

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In Hindi By Famous Poet Shamim Jaipuri. is written by Shamim Jaipuri. Complete Poem in Hindi by Shamim Jaipuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.