रहम ऐ ग़म-ए-जानाँ बात आ गई याँ तक
रहम ऐ ग़म-ए-जानाँ बात आ गई याँ तक
दश्त-ए-गर्दिश-ए-दौराँ और मिरे गरेबाँ तक
इक हमीं लगाएँगे ख़ार-ओ-ख़स को सीने से
वर्ना सब चमन में हैं मौसम-ए-बहाराँ तक
मेरी दस्तक-ए-वहशत आज रोक लो वर्ना
फ़ासला बहुत कम है हाथ से गरेबाँ तक
है 'शमीम' अज़ल ही से सिलसिला मोहब्बत का
हल्क़ा-ए-सलासिल से गेसू-ए-परेशाँ तक
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