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न पूछ कब से ये दम घुट रहा है सीने में - शमीम जयपुरी कविता - Darsaal

न पूछ कब से ये दम घुट रहा है सीने में

न पूछ कब से ये दम घुट रहा है सीने में

कि मौत का सा मज़ा आ रहा है जीने में

न जाने क्यूँ ये तलातुम डुबो नहीं देता

कि नाख़ुदा भी नहीं अब मिरे सफ़ीने में

क़दम क़दम पे बचाया है ठोकरों से मगर

ख़राश आ ही गई दिल के आबगीने में

महक रही है सबा सुब्ह से न जाने क्यूँ

नहा के आई है शायद तिरे पसीने में

'शमीम' साहिल ओ कश्ती से कुछ उमीद न रख

कोई वक़ार नहीं इस तरह से जीने में

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In Hindi By Famous Poet Shamim Jaipuri. is written by Shamim Jaipuri. Complete Poem in Hindi by Shamim Jaipuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.