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रोज़ ओ शब की गुत्थियाँ आँखों को सुलझाने न दे - शमीम हनफ़ी कविता - Darsaal

रोज़ ओ शब की गुत्थियाँ आँखों को सुलझाने न दे

रोज़ ओ शब की गुत्थियाँ आँखों को सुलझाने न दे

और जाने के लिए उठ्ठूँ तो वो जाने न दे

सुरमई गहरा ख़ला बे-जान लम्हों का ग़ुबार

मैं न कहता था गुल-ए-मंज़र को मुरझाने न दे

या दिल-ए-वहशी पे यूँ एहसास की यूरिश न हो

या भरी आबादियों को ऐसे वीराने न दे

आरज़ू के क़हर से साँसों की कश्ती को बचा

बादबानों को हवा के साथ लहराने न दे

सुन रहा हूँ देर से जाते हुए लम्हों की चाप

अब किसी को सरहद-ए-इदराक तक आने न दे

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In Hindi By Famous Poet Shamim Hanafi. is written by Shamim Hanafi. Complete Poem in Hindi by Shamim Hanafi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.