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परछाइयों की बात न कर रंग-ए-हाल देख - शमीम हनफ़ी कविता - Darsaal

परछाइयों की बात न कर रंग-ए-हाल देख

परछाइयों की बात न कर रंग-ए-हाल देख

आँखों से अब हवा-ओ-हवस का मआ'ल देख

दो शेर जिस के क़हर की जंगल में धूम थी

मेरी नशिस्त-गाह में अब उस की खाल देख

ख़ुश्बू की तरह गूँज उठा हर्फ़-ए-आगही

ऐ दिल ज़रा हिसार-ए-नफ़स का ज़वाल देख

तुझ से क़रीब आए तो अपनी ख़बर न थी

दूरी का ये अज़ाब ब-रंग-ए-विसाल देख

बुझती हुई सदा की तरह ख़ुद में डूब जा

पेश-ए-निगाह जब भी तमन्ना का जाल देख

पलकों में तेज़ धूप का मंज़र समेट ले

फिर कासा-ए-बदन में लहू का उबाल देख

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In Hindi By Famous Poet Shamim Hanafi. is written by Shamim Hanafi. Complete Poem in Hindi by Shamim Hanafi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.