परछाइयों की बात न कर रंग-ए-हाल देख
परछाइयों की बात न कर रंग-ए-हाल देख
आँखों से अब हवा-ओ-हवस का मआ'ल देख
दो शेर जिस के क़हर की जंगल में धूम थी
मेरी नशिस्त-गाह में अब उस की खाल देख
ख़ुश्बू की तरह गूँज उठा हर्फ़-ए-आगही
ऐ दिल ज़रा हिसार-ए-नफ़स का ज़वाल देख
तुझ से क़रीब आए तो अपनी ख़बर न थी
दूरी का ये अज़ाब ब-रंग-ए-विसाल देख
बुझती हुई सदा की तरह ख़ुद में डूब जा
पेश-ए-निगाह जब भी तमन्ना का जाल देख
पलकों में तेज़ धूप का मंज़र समेट ले
फिर कासा-ए-बदन में लहू का उबाल देख
(594) Peoples Rate This