लक़ड़हारे तुम्हारे खेल अब अच्छे नहीं लगते
लक़ड़हारे तुम्हारे खेल अब अच्छे नहीं लगते
हमें तो ये तमाशे सब के सब अच्छे नहीं लगते
उजाले में हमें सूरज बहुत अच्छा नहीं लगता
सितारे भी सर-ए-दामान-ए-शब अच्छे नहीं लगते
तो ये होता है हम घर से निकलना छोड़ देते हैं
कभी अपनी गली के लोग जब अच्छे नहीं लगते
ये कह देना कि उन से कुछ गिला-शिकवा नहीं हम को
मगर कुछ लोग यूँ ही बे-सबब अच्छे नहीं लगते
न रास आएगी जीने की अदा शायद कभी हम को
कभी जीना कभी जीने के ढब अच्छे नहीं लगते
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