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कई रातों से बस इक शोर सा कुछ सर में रहता है - शमीम हनफ़ी कविता - Darsaal

कई रातों से बस इक शोर सा कुछ सर में रहता है

कई रातों से बस इक शोर सा कुछ सर में रहता है

कि वो बुत भी नहीं फिर किस तरह पत्थर में रहता है

वहाँ सहरा भी है जंगल भी दरिया भी चटानें भी

अजब दुनिया बसा रक्खी है वो जिस घर में रहता है

खिलेगी धूप जब परछाइयाँ पेड़ों से निकलेंगी

ये मंज़र भी इसी सिमटे हुए मंज़र में रहता है

बुलंद ओ पस्त की तफ़रीक़ क्या सब एक जैसे हैं

मगर पर्वाज़ का सौदा जो बाल-ओ-पर में रहता है

इसी बाइस ज़मीं की गोद से उठता नहीं कोई

बहुत आराम गिरने टूटने के डर में रहता है

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In Hindi By Famous Poet Shamim Hanafi. is written by Shamim Hanafi. Complete Poem in Hindi by Shamim Hanafi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.