हसीन रुत है मगर कौन घर से निकलेगा
हर इक बदन में समाया हुआ है डर अब के
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दूर तक फैला हुआ है एक अन-जाना सा ख़ौफ़
मिरे हाथ की सब दुआ ले गया
आसमाँ का रंग मेरी ज़ात में घुल जाएगा
बहुत घुटन है बहुत इज़्तिराब है मौला
अँधेरी शब है कहाँ रूठ कर वो जाएगा
शर्मीली छूई-मूई अजब मोहनी सी थी
जो भी कहना हो वहाँ मेरी ज़बानी कहना
डूबते सूरज का मंज़र वो सुहानी कश्तियाँ